भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व माना जाता है। आरम्भ में आदान-प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय का उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गौ संख्या से की जाती थी। “गावो भगो गाव इन्द्रः…” अर्थात् गाय को सौभाग्य का सूचक कहा जाता है और उसे ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है। “यूयं गावो मेदयथा कृशं चिद्…” गाय के दूध से निर्बल व्यक्ति सबल बनता है और कृश व्यक्ति सुन्दर सुडौल बन जाता है। वेद में कहा है कि “अघ्न्येयं सा वर्धतां महते सौभगाय” अर्थात् घर में सौभाग्य के लिए अवध्य गाय का पालन करना चाहिए, उसकी कभी हिंसा नहीं करनी चाहिए। “व्रजं कृणुध्वं स ही वो नृपाण:” अर्थात् गाय की सुरक्षा के लिए गौशाला का निर्माण करें, जिससे उनकी सुरक्षा हो सके और खान-पान की व्यवस्था ठीक हो सके।
गोमाता मंत्र सर्वकामदुधे देवि सर्वतीर्थीभिषेचिनि ll
पावने सुरभि श्रेष्ठे देवि तुभ्यं नमोस्तुते l|
यजुर्वेद में प्रश्नोत्तर के माध्यम से बताया गया है कि “गोस्तु मात्रा न विद्यते” अर्थात् गाय के गुणों की कोई सीमा या मात्रा नहीं होती। गाय का महत्व इसलिए है क्योंकि वह अनेक प्रकार से मनुष्य की कामनाओं को पूर्ण करती है। गाय का दूध अमृत के तुल्य है क्योंकि गौ दुग्ध में पौष्टिकता अधिक है, उसमें शक्ति के साथ स्फूर्ति भी है। गाय का दूध रोगी व्यक्ति को निरोग और बलिष्ठ, निर्बल को बलयुक्त, कृश व्यक्ति को हष्ट-पुष्ट बनाता है। गाय की पांच वस्तुयें (अवयव) औषधि के रूप में प्रयोग में आती हैं, जिसको पंचगव्य नाम से जाना जाता है। गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर के पानी को सामूहिक रूप से पंचगव्य कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे औषधि की मान्यता है। समाज में कोई भी शुभ-कार्य इनके बिना पूरे नहीं होते। यहां तक कि गाय के मूत्र और गोबर तक को शुद्ध और पवित्र माना जाता है।