देव देवालय समारम्भे , सेवा संस्कार हेतवे।

राष्ट्र धर्म स्थापनाय, शिव संकल्प करोम्यहं।


त्रलोकेयं त्रिदेवं च , जगद् उतपत्यादी कारणे।

त्रिगुणतीतं भवने साशान, नामै ती त्रिपुररत:


तस्मातगुणधर्म मामनाम , सनातनीयं यतोयत : .

सर्व भू देवालयं कृत्वा , देहापर्णे : अह्निर्ष।


द्विजानियात विजानियात , धर्मानीयत सनातनं।

धर्मरक्षण कृतनियात , तदम्याह्म ब्राह्मण भवेत्।


देवाभिषेकं रुद्रभिषेकम , धर्माभिषेकं लोक कल्याणनिमत्त :

दिने दिने श्रावण मास नित्यं , स्वयंभू शिवाम्भु स्वायत्त सतं